Lekhika Ranchi

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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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खेत में पहुँचकर दोनों मचान पर लेटे। अमावस की रात थी। आकाश पर कुछ बादल भी आये थे। चारों ओर घोर अन्धकार छाया हुआ था।

मनोहर तो लेटते ही खर्राटे लेने लगा, लेकिन बलराज पड़ा-पड़ा करवटें बदलता रहा। उसका हृदय नाना प्रकार की शंकाओं का अविरल स्रोत्र बना हुआ था।

दो घड़ी बीतने पर मनोहर जागा, बोला, बसराज सो गये क्या?

बलराज– नहीं, नींद नहीं आती।

मनोहर– अच्छा, तो अब राम का नाम लेकर तैयार हो जाओ। डरने या घबराने की कोई बात नहीं। अपने मरजाद की रक्षा करना मरदों का काम है। ऐसे अत्याचारों का हम और क्या जवाब दे सकते हैं? बेइज्जत होकर जीने से मर जाना अच्छा है। दिल को खूब सँभालो। अपना काम करके सीधे यहाँ चले आना। अंधेरी रात है। किसी की नजर भी नहीं पड़ सकती। थानेदार तुम्हें डरायेंगे, लेकिन खबरदार, डरना मत! बस गाँव के लोगों से मेल रक्खोगे तो कोई तुम्हारा बाल भी बाँका न कर सकेगा। दुखरन भगत अच्छा आदमी नहीं है, उससे चौकन्ने रहना। हाँ, कादिर भरोसे का आदमी है। उसकी बातों का बुरा मत मानना। मैं तो फिर लौटकर घर न आऊँगा। तुम्हीं घर के मालिक बनोगे, अब वह लड़कपन छोड़ देना, कोई चार बात कहे तो गम खाना। ऐसा कोई काम न करना कि बाप-दादे के नाम को कलंक लगे। अपनी घरवाली को सिर मत चढ़ाना। उसे समझाते रहना कि सास के कहने में रहे। मैं तो देखने न आऊँगा, लेकिन इसी तरह घर में रार मचता हो तो घर मिट्टी में मिल जायेगा।

बलराज ने अवरुद्ध कंठ से कहा, दादा मेरी इतनी बात मानो, इस बखत सबुर कर जाओ! मैं कल एक-एक की खोंपड़ी तोड़कर रख दूँगा।

मनोहर– हाँ, तुम्हें कोई मारे तो तुम संसार भर को मार गिराओ। फैजू और कर्तार क्या मिट्टी के लोंदे हैं? गौस खाँ भी पलटन में रह चुका है। तुम लकड़ी में उनसे पेश न पा सकोगे। वह देखो, हिरना निकल आया। महाबीर जी का नाम लेकर उठ खड़े हो। ऐसे कामों में आगा-पीछा अच्छा नहीं होता। गाँव के बाहर ही चलाना होगा, नहीं तो कुत्ते भूँकेंगे और जाग उठेंगे।

बलराज– मेरे तो हाथ-पैर काँप रहे हैं।

मनोहर– कोई परवा नहीं। कुल्हाड़ी हाथ में लोगे तो सब ठीक हो जायेगा। तुम मेरे बेटे हो, तुम्हारा कलेजा मजबूत है। तुम्हें अभी जो डर लग रहा है, वह ताप के पहले का जाड़ा है। तुमने कुल्हाड़ा कन्धे पर रक्खा, महाबीर का नाम लेकर उधर चले, तो तुम्हारी आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगेंगी। सिर पर खून सवार हो जायेगा। बाज की तरह शिकार पर झपटोगे। फिर तो मैं तुम्हें मना भी करूँ तो न सुनोगे। वह देखो सियार बोलने लगे, आधी रात हो गयी। मेरा हाथ पकड़ लो और आगे-आगे चलो। जय महाबीर की!

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